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dc.contributor.authorVerma, Sanjay-
dc.date.accessioned2024-05-11T12:23:03Z-
dc.date.available2024-05-11T12:23:03Z-
dc.date.issued2023-
dc.identifier.issn978-93-5053-915-6-
dc.identifier.urihttp://lrcdrs.bennett.edu.in:80/handle/123456789/2554-
dc.description.abstractदुनिया के ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ना और उन्हें मापना बेहद जोखिम भरा काम है। लेकिन पर्वतों की इन ऊंचाइयों से इंसान को अपनी क्षुद्रताओं या कहें कि छोटेपन का अहसास होता है। यही नहीं, हर साल तमाम लोग इस जोखिम को इसलिए उठाते हैं ताकि वे अपना शौर्य-पराक्रम दिखा सकें और कई इसलिए इन पर जाते हैं ताकि अच्छा जीवन बसर करने की उनकी आकांक्षा फलीभूत हो सके। मशहूर पर्वतारोही तेनजिंग नोर्गे के पुत्र जामलिंग नोर्गे ने एक बार अपने इस पिता के बयान को उद्धृत किया था कि वह एवरेस्ट पर इसलिए चढ़ते हैं, ताकि उनके बच्चों को कभी इस पर न चढ़ना पड़े। बेशक, दुनिया में एवरेस्ट एक ही है और सिर्फ पर्वतारोहियों की नजर से ही नहीं, जीवन में एक ऊंचाई हासिल करने के हरेक ख्वाहिशमंद के लिए भी वह एक असीम प्रेरणा है। वर्ष 2020 में माउंट एवरेस्ट की चर्चा छिड़ने की एक खास वजह यह थी कि नेपाल-चीन के संयुक्त अभियान में इस पर्वतशिखर को फिर से नापने का नतीजा यह निकला है कि इसकी ऊंचाई पहले के मुकाबले करीब एक मीटर (86 सेंटीमीटर) बढ़ गई है। एवरेस्ट की यह नई ऊंचाई (8,848.86 मीटर) इस मायने में उल्लेखनीय कही जाएगी कि वर्ष 2015 में नेपाल में आए विनाशकारी भूकंप में इस शिखर की ऊंचाई घट जाने का अनुमान लगाया गया था।en_US
dc.publisherCyber Tech Publicationsen_US
dc.titleसवालों से बौना हुआ शिखरen_US
dc.typeBook Chapteren_US
Appears in Collections:Book Chapters_TSoM

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